इस कल्पना के मुख्य लक्षण को देखेंगे तो शौर्य्यादि क्षात्र गुणों का नम्रता, उदारता, आत्मनिग्रह आदि भिन्न गुणों के साथ संयोग करना है। एक ओर तो युद्धकला में प्रवीणता प्राप्त करनी शौर्य्यादि क्षात्र गुणों में प्रदीप्त होना; दूसरी ओर निर्बलों, असमर्थों और युद्ध न करने वालों के साथ नम्रता और उदारता से बरतना; ख़ासकर के स्त्रियों में पूज्यदृष्टि, अधीनता का भाव होना; इस प्रकार के दो पारस्परिक भिन्न प्रकृति वाले गुणों का एक में संयोग करना ही "शिवेलरी" का मुख्य उद्देश था। स्त्रियों के प्रति पूज्यभाव रखने का कारण यह था कि, उन्हें बलात्कार से वश करने की अपेक्षा उनका हृदय जीतने के लिए जो पुरुष साम्योपचार को काम में लाता है, तथा उनकी प्रसन्नता प्राप्त करने की कोशिश करता है उस ही पर स्त्रियाँ प्रसन्न होती हैं और उनके अधिकार में जो कुछ देने योग्य चीज होती है उसे वे प्रसन्नता-पूर्वक दे डालती