है। विवाह में स्त्रियों की सम्मति नहीं ली जाती। पति और पुत्र की सेवा के अलावा वे और किसी बात में हाथ नहीं
लगा सकती[१]"।
दो हज़ार वर्ष पूर्व ग्रीस में स्त्रियों को जो दशा थी आज दो हज़ार वर्ष बाद हमारे देश में स्त्रियों को वही दशा है। अपनी पुरानी तरक्की का फूटा नकारा पीटने वाला हमारा समाज, यदि आँखें रखता है––यदि हृदय रखता है तो वह देखे कि उसने अपने हाथ में आये हुए अधिकारों को किस बुरी तरह से कुचला है। जो व्यक्ति आज्ञापालन करना नहीं जानता वह आज्ञा देने का अधिकारी नहीं हो सकता। जो स्वयं उदारतापूर्वक दूसरों को अधिकार नहीं दे सकते, उनका दूसरों से अधिकार पाने की आशा रखना हँसी की
बात है। पुरानी रूढ़ियों पर हम जैसे लकीर के फ़कीर बने है, वैसी जाति इस समय संसार में और कोई नहीं है। यदि हमें ज़रा से सुधार करने की आवश्यकता होती है,––यदि हमें एक कदम आगे बढ़ने की ज़रूरत होती है तो हम अपने सैंकड़ो वर्ष के पुराने शास्त्रों के जीर्ण-शीर्ण पृष्ठ लौटने लगते हैं––प्राचीन रूढ़ि और लोगो का मुंह ताकने लगते है––यह हमारी सब से बड़ी आत्मिक कमजोरी है, बुज़दिली है। हमारी यह श्रद्धा बड़ी भूल भरी है कि हमारे
- ↑ Hill's essæys on the institution & of the States of ancient Greece, page 266