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अङ्कुश में रखने वाले नैतिक नियमों की ज़ियादा हिमायत लिया करते हैं। उत्तर के निवासियों ने जिस समय योरप-खण्ड को जीतना शुरू किया उस समय स्त्रियों ने ही उन्हें ईसाई बनाने का काम ज़ियादा किया था, क्योंकि उस ज़माने में सब धर्मों की अपेक्षा ईसाई धर्म ही स्त्रियों के लिए अच्छा था। एंग्लो-सेक्सन्स और फ्रेंक्स लोगों को नवीन धर्म में लाने का प्रारम्भ एथलबर्ट और क्लॉविस नामक राजाओं की रानियों ने किया था।

पुरुषों के नैतिक व्यवहार पर स्त्रियों के सहवास का जो दूसरा प्रभाव होता है वह इस प्रकार है। धैर्य्य, शौर्य्य आदि पुरुषत्त्व के जो गुण ख़ुद उन (स्त्रियों) में नहीं होते, उनका होना अपने संरक्षकों (पुरुषों) में आवश्यक समझती हैं—इसलिए वे सदा इन गुणों के लिए उन्हें उत्साहित करती रहती हैं। प्रायः पुरुष स्त्रियों से धैर्य्य शौर्य्यादि क्षात्र गुणों की प्रशंसा सुनना पसन्द करते हैं और इसीलिए वे इन गुणों में

प्रदीप्त हो उठते है; तथा स्त्रियों की ओर से मिलते हुए प्रोत्साहन का असर इतने ही पर समाप्त नहीं हो जाता, क्योंकि जो पुरुषवर्ग के बखान के योग्य होते हैं उन्हीं पर स्त्रियों का अनुग्रह भी होता है। इस प्रकार स्त्रियाँ जो दो नैतिक अधिकार पुरुषों पर रखती है, इनका मिश्रण होने से वीरकाल में "शिवेलरी" (Chivalry) की कल्पना हुई थी*[]


  1. * "शिवेलरी" (Chivalry) शब्द का अर्थ 'पराक्रम' होता है। किन्तु योरप के वीरकाल में इस शब्द का प्रयोग पराक्रम के साथ और बहुत से उदार गुणों के मिश्रण के लिए होता था। उस पराक्रमी पुरुष में उदारता, शुद्धता, नम्रता, दया, शरणवत्सलता, शत्रु की भूल का नाजायज फ़ायदा न उठाना, निःशस्त्र शत्रु पर वार न करना आदि गुण अवश्य होने चाहिएँ। साथ ही वह स्त्रियों में पूज्य भाव रखने वाला हो, अबला की रक्षा करने वाला हो, संकट और विपत्तियाँ सह कर भी स्त्रियों की प्रसन्नता प्राप्त करने वाला हो। ऐसा पराक्रमी पुरुष Chivalrous spirit वाला कहा नाता था। रामायण और महाभारत में जैसे सत्यनिष्ठ योद्धाओं का उदार भाव वर्णन किया गया है, वैसे ही सत्यनिष्ठ वीर के लिए योरप के वीरकाल में 'शिवलरी' की कल्पना थी।