पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२६७

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काला परदा हट जाय और वह समझ ले कि,-"संसार के मनुष्य-प्राणियों के समान मैं भी एक मनुष्य हूँ; अपने मन-चाहे काम को करने की मुझे भी पूरी स्वाधीनता है; मनुष्य-जाति के फ़ायदे को हर एक बात में हिस्सा लेने की मुझे भी आज़ादी है, और यदि मैं भी संसार का लाभ करूँगी तो मुझे भी पुरुषों के बराबर ही लाभ होगा। मनुष्य-जाति के लाभ में प्रत्यक्ष रूप से मैं भाग लूँ या न लूँ, फिर भी एक व्यक्ति की राय के बराबर मेरी राय का भी वज़न है, इस लिए सार्वजनिक कामों में मुझे भी अपनी राय देने का हक है," यदि प्रत्येक स्त्री के हृदय और मन में इस ही प्रकार का पूर्ण विश्वास हो जाय, तो इन्हीं स्त्रियों की बुद्धि कितनी विशाल हो जायगी और नैतिक विचार कितने ऊँचे होने सम्भव हैं।

८-आज-कल के सांसारिक काम-काज और व्यवहार निवाहने के योग्य पुरुषों की इतनी बुद्धि नहीं बढ़ गई है कि प्रकृति के दिये हुए बुद्धि के आधे भाग को बेकाम बनाये रख कर भी वे अपना काम चला सकें। यदि स्त्रियों को सब प्रकार की स्वाधीनता होगी तो सांसारिक व्यवहार विशेष योग्य रोति से चलने लगेगा, और यह प्रत्यक्ष लाभ होगा। इसके अलावा आज तक मनुष्य जाति की समझ और बुद्धि पर जो स्त्रियों का असर होता था, उस में लौट-फेर हो जाने से, वह विशेष लाभप्रद होगा। स्त्रियों के असर से विशेष लाभप्रद कहने का मतलब यह है कि जब से मनुष्य-जाति का विश्वास