ही चाहिए। इसलिए स्त्री-पुरुषों के ऐसे भद्दे सम्बन्ध को दूर करके यदि इसकी स्थापना न्याय पर की जाय तो इसके कारण समाज का स्वरूप इतना सुधर जायगा कि हमारे इस समय के अनुभव से हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते! जब तक दुश्मनों की उस जगह पर हमला नहीं किया जाता जहाँ से उन्हें खाने-पीने की चीजें मिलती रहती हैं तब तक उन पर जय प्राप्त करना असम्भव होता है; चारित्र्य के सुधार में भी जब तक उसकी जड़ों तक न पहुँचा जायगा तब तक "लाठी उसकी भैंस" वाले न्याय पर स्थापित स्त्रियों का सम्बन्ध व्यक्ति मात्र के स्वभाव और चरित्र पर जो शिथिलता का असर करता है वह शिक्षा और सुधार का गीत गाते रहने से ही मनुष्यों के मन से नहीं निकल सकता। क्योंकि और
बातों का असर ऊपर ही ऊपर होता है भीतर नहीं वेधता। सद्वर्तन ही मनुष्य को सम्मान-योग्य बनाता है, यह नीति और राजनीति का तत्त्व आजकल सर्वमान्य हो रहा है। मनुष्य कुलीनता या धनाढ्यता से सम्मान का पात्र नहीं समझा जाता, किन्तु यदि उसका व्यवहार उत्कृष्ट और नीतियुक्त हो तभी हम उसे सम्मान-योग्य समझेंगे। एस ही प्रकार विशेष स्थिति या विशेष कुल में जन्म लेने के कारण कोई व्यक्ति अधिकारों का पात्र नहीं हो सकता, बल्कि जिसकी जैसी योग्यता होती है वह वैसे ही अधिकार भोगने के योग्य समझा जाता है*[१]। किन्तु विवाह-सम्बन्ध में जब एक मनुष्य-
- ↑ * गुण-पूजास्थान गुणिषु न च लिङ्ग न च वयः।