पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२५८

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उतनी कम प्रकट हो और ख़ास करके बच्चों के सामने इस बात को नहीं आने देते। बच्चे जितना सम्मान पिता का करते हैं उतना ही माता का भी सम्मान करना उनको सिखाया जाता है; उन्हें इस बात की मनाही की जाती है कि वे अपने से अपनी बहनों को नीची न समझें, और ऐसा बर्ताव करते हैं कि जिस से लड़का समझे कि, "मैं मां-बाप को अधिक प्रिय हूँ और बहनों की अपेक्षा मुझे सब चीजें अच्छी मिलती हैं" बल्कि उनका बर्ताव ऐसा होता है कि इसके ख़िलाफ़ ही उनका ख़याल होता है। लड़कों के मन सदा इस प्रकार शिक्षित होते रहते है कि लड़कियाँ क़ुदरत से ही कमजोर होती हैं इसलिए उनके साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे उन्हें सन्तोष हो, तथा लड़कियों को जो पराधीनता प्राप्त होनी है उसकी कल्पना लड़कों के मन में उठने से रोकी जाती है। इन बातों के कारण कुटुम्ब में पैदा हुए बालक बाल्यावस्था तक कुटुम्ब के चारों ओर होने वाली इन बातों से मुक्त होते हैं, और जब वे युवा होते हैं और अपनी आँखों से प्रत्यक्ष व्यवहार देखते हैं तभी उन्हें वास्तविक स्थिति का ज्ञान होता है। जिन लड़कों को कुटुम्ब में इस प्रकार की शिक्षा नहीं मिलती, उनके मनों में अपने आप को लड़कियों से अच्छा समझने का ख़याल कितने छोटेपन से पैदा होता है, यह बात ऊपर कहे हुए कुटुम्ब वालों को मालूम ही नहीं होती। लड़के यही समझते है कि, 'हम लड़के है इसलिए