किसी को दोष नहीं दिया जाता, या प्रस्तुत स्थिति में लौट-फेर करने का उद्देश नहीं दिखाया जाता। पर यह ध्यान में रखना चाहिए कि यदि अधिकार भोगने वाले पुरुष-वर्ग के प्रति स्त्रियाँ प्रकट रूप से आन्दोलन नहीं करतीं तब भी हर एक स्त्री अपनी सखियों के सामने अपने पति के घातकी व्यवहार की शिकायत तो करती ही है। ग़ुलामी के जितने तरीक़े हैं उन सब में यह बात ऐसे ही हुआ करती है। और ख़ास करके जब बन्धन टूटने का समय निकट होता है तब तो यह बात ऐसे ही होती है। शुरू में ज़मींदारों के खिलाफ किसानों को शिकायत नहीं थी; किन्तु उस शिकायत का कटाक्ष जमींदारों की इस बात के ख़िलाफ़ था कि वे लोग अपनी सत्ता का दुरुपयोग करते हैं, तथा किसानों पर अत्याचार होता है। साधारण-वर्ग के मनुष्यों (Commons) ने पहली ही पहली बार राजा से यही अधिकार माँगा था कि उन्हें स्थानीय बातों के विषय में हक़ दिये जायँ; इसके बाद उन्होंने यह माँगा कि उनकी सम्मति के बिना राजा कोई नया कर न लगावे-किन्तु पहली ही बार यदि किसी ने राज्याधिकार में हिस्सा माँगा होता, तो उसकी बात सब को उद्धतता से ही भरी मालूम होती। उस ज़माने में राजा के ख़िलाफ़ आन्दोलन करना जितना निन्द्य और अघटित घटना समझी जाती थी—आज-कल के ज़माने में उतनी ही निन्द्य और अघटित घटना यदि कोई समझी
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