२४-इस विषय में एक और बात ध्यान देने योग्य है। कारीगरी और प्रत्येक बुद्धि-सम्बन्धी काम में एक सीमा तक की प्रवीणता या होशियारी तो केवल उपजीविका सम्पादन करने ही के लिए काफ़ी होती है। और जिसे कीर्त्ति सम्पादन करनी हो, या विलक्षण करामात के द्वारा अपना नाम अमर कर जाना हो, उसे इससे भी कहीं अधिक उच्च प्रवीणता प्राप्त करने की आवश्यकता है। पहले प्रकार की प्रवीणता तो जो लोग किसी काम को किसी व्यवसाय के तौर पर स्वीकार करते हैं उन्हें प्राप्त होती ही है। किन्तु दूसरे प्रकार की प्रवीणता तो उन्हीं को प्राप्त हो सकती है जिन्हें अपना नाम अमर करने की उत्कट आकाङ्क्षा होती है। अत्यन्त बुद्धिमत्ता से भरे हुए, तथा सुन्दर और भव्य काम जो हमारे देखने में आते हैं, उन में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए जिस कौशल और हिम्मत की ज़रूरत है, उसे प्राप्त करने के लिए प्रकृतिदत्त विलक्षण बुद्धि वाले मनुष्यों को भी अटूट परिश्रम में निरन्तर लगे रहना पड़ता है। इसलिए इतनी कठिनाइयाँ झेल कर निरन्तर श्रम किये जाने की हिम्मत नाम अमरकरने की प्रबल लालसा से ही मिलती है। किन्तु स्त्रियों के मनों में अपना नाम अमर करने की इच्छा कोई कहीं ही पैदा होती है। यह नहीं कहा जा सकता कि इसका कारण स्वाभाविक है या कृत्रिम। उनकी महत्त्वाकाङ्क्षा का दायरा बहुत ही छोटा होता है। उनकी बड़ी से बड़ी इच्छा यही
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