लोग उसकी इस बात को कभी माफ़ न करेंगे। अपने घरेलू काम-काजों को और ज़रूरी कामों को एक ओर रख कर उसे व्यवहार पूरा करना ही पड़ता है। व्यवहार पूरा करने के लिए वह उन्हीं हालतों में मजबूर नहीं है जब घर में कोई बीमार हो या कोई असाधारण बात हो। इन हालतों को छोड़ कर बाक़ी सब मौक़ों पर हर एक आते-जाते से उसे व्यवहार की चार बातें करनी पड़ती हैं। यदि उसने अपनी इच्छा से किसी विषय को सीखना सोचा हो या उसे किसी व्यवसाय का ज्ञान प्राप्त करना हो—तो इसे वह इधर-उधर से समय काट-कूट कर पूरा करती है। एक सुप्रसिद्ध स्त्री ने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है कि स्त्रियों को हर एक काम बचे-बचाये समय में पूरा करना पड़ता है। ऐसी दशा होने के कारण, जिन कामों में मन की पूरी एकाग्रता की ज़रूरत है, तथा जिन कामों में रात-दिन एक करके लग जाने की ज़रूरत होती है, उन कामों में यदि स्त्रियाँ संसार में सब से ऊँची न कहा सकें तो इस में आश्चर्य की कौन सी बात है तत्त्वचिन्तन का काम इस ही प्रकार का है। कला-कौशल और कारीगरी के काम भी ऐसे ही होते हैं। इन कामों में जिसे सबसे अच्छा बनना होता है उसे अपनी तमाम बुद्धि और तमाम समय लगा कर एकनिष्ठा और एक-ध्यान से लम्बे अर्से तक लगा रहना पड़ता है, तथा इतने ही से बस नहीं होता बल्कि ऊँची चतुराई पाने के लिए उसे लगातार कड़ी मिहनत करनी पड़ती है।
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