कामों को पूरा करने के बाद भी अवकाश रहता हो और दूसरे काम करने की इच्छा तथा मन कr स्वतन्त्रता बचती हो-सब कुछ काम करने के बाद एक-आध कला के अध्ययन या तत्त्वमींमासा के काम में अपने बचाये हुए समय को लगाने की इच्छा हो-तो समझना चाहिए कि उनकी मानसिक शक्ति पुरुषों से कहीं अधिक है। किन्तु इतने ही से बस नहीं होता। गृहिणी के सब कर्त्तव्य सन्तोषकारक रीति से पूरे करने के बाद, उसे कुटुम्ब और आप्तवर्ग के प्रत्येक मनुष्य का कुछ न कुछ काम करना पड़ता है। उसे अपने समय और बुद्धि के साथ सब की सेवा में हाज़िर रहना पड़ता है। पुरुष जब किसी उदर-निर्व्वाह के काम में लगा होता है तब वह घरेलू या सामाजिक कर्त्तव्य पूरा करने के लिए उतना बाध्य नहीं समझा जाता, किन्तु यदि वह उदर-निर्व्वाह के काम में न लग कर अपना समय खेल-कूद या हँसी-दिल्लगी
में ही बिता देता हो और सगे-सम्बन्धियों से मिलने-जुलने की ओर ज़रा भी ध्यान न देता हो, तब भी उसे कोई दोष नहीं देता। कुछ भी न करने पर पुरुष यदि किसी मिलने वाले से कहदे कि "इस समय मैं काम कर रहा हूँ" या "अभी मुझे फुरसत नहीं है", तो उसकी यह बात बिना वजह भी मानी जायगी। पर यदि कोई स्त्री काम में रुकी होने ही के कारण, और ख़ास करके अपने पहनने-ओढ़ने के काम में लगी होने के कारण-घरेलू व्यवहारों को पूरा न कर सके तो
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