पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२२९

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(२०८)


योग्य स्थान नहीं निश्चित कर देता, तब तक उसकी क़ीमत किसी के ध्यान में नहीं आती। ऐसी उपयोगी कल्पना स्त्रियों में होती होगी-यह क्या किसी अनुमान से सिद्ध हो सकता है? प्रत्येक बुद्धिमती स्त्री को ऐसे सैंकड़ों विचार सूझते हैं, किन्तु उनमें से अधिकांश व्यर्थ जाते हैं-क्योंकि उनके पति और कुटुम्बी उन विचारों को या तो समाज के समक्ष रखना ही पसन्द नहीं करते और या उनके समझने की ही योग्यता उन में नहीं होती। और यदि कभी-कभी ये विचार संसार के सामने आ भी जाते हैं तो वे किसी पुरुष की कृति के रूप में होते हैं और उसके सच्चे कर्त्ता का नाम अँधेरे में ही होता है। पुरुष-लेखकों के ग्रन्थों द्वारा जितने नवीन विचार प्रकट हुए हैं, उन में कितनी अमूल्य कल्पनाएँ स्त्रियों की विशेष सूचना से लिखी गई हैं, इसका निर्णय कोई नहीं कर सकता। यदि मैं केवल अपने ही अनुभव से इसका अन्दाज़ा लगाऊँ तो ऐसे विचारों की संख्या बहुत अधिक दीखती है।

२१-केवल तत्त्वज्ञान-सम्बन्धी विचारों को छोड़ कर यदि हम साधारण साहित्य और ललित कलाओं पर विचार करेंगे, तो हमें मालूम होगा कि स्त्रियों के हाथ से लिखे हुए ग्रन्थों की कल्पना और सामान्य रूप जो पुरुष-ग्रन्थकारों के सदृश होता है उसका कारण स्पष्ट है। विद्वान् समालोचक समय-समय पर प्रकट करते हैं कि रोमन लोगों का