पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२२६

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( २०५)


स्त्रियों का मन ही इस ओर नहीं दीखता। हिपेशिया*[१] के समय से धार्मिक सुधार के समय तक, यदि किसी स्त्री ने तत्त्वमीमाँसा के काम में यश प्राप्त किया तो वह हेलोइज़ा ही थी। किन्तु उसका जीवन क्लेशपूर्ण होने के कारण वह अपने ज्ञान से संसार को कुछ भी लाभ न पहुँचा सकी, इस बात से तस्वमीमांसा को कितनी हानि हुई होगी, सो कोई नहीं कह सकता। और जब से स्त्रियों की ख़ासी तादाद

गम्भीर विषयों पर विचार करने लगी तब से नवीन और विलक्षण विचारों को खोज निकालने का काम उतना सरल नहीं रहा। केवल अपूर्व मानसिक शक्ति से जो विचार सूझ सकते हैं, वे तो संसार में बहुत अर्से से प्रकट हो चुके थे; और "नवीन विचार" शब्द का जो कुछ सच्चा अर्थ होता है वह तो उन्हीं को सूझ सकता है जो वर्तमान उच्च शिक्षा से दीक्षित हुए हैं या जिन्होंने अपने से पहले वाले विद्वानों के ग्रन्थ मनोयोग-पूर्वक पढ़े हैं, अन्यथा और बुद्धिमान् मनुष्यों को उनका सूझना कठिन है। वर्तमान समय की बुद्धि-सामर्थ्य का विवेचन करते समय, मेरी समझ के अनुसार मेरिस ने जो यह कहा है कि जिन्हें अपने से पहले विद्वानों का पूरा ज्ञान होता है, वे ही इस ज़माने में अपने नवीन विचार


  1. * हिपेशिया (Hypatta) नामक विदुषी स्त्री तत्त्वशास्त्र और गणितशास्त्र में विशेष योग्यता वाली थी। यह अलेमज़ेस्ड्रिया नगर में ईसा से १६०० वर्ष पूर्व हुई है।