उसके द्वारा होने वाले कामों में नित्य सम्बन्ध है-क्योंकि जैसा उत्पत्ति-स्थान बड़ा वैसे ही उस में से उत्पन्न होने वाली शक्तियों का समुदाय भी बड़ा न होगा-यह अनहोनी सी मालूम होती है-इस बात का कहना जीवन-शक्ति और इन्द्रिय-रचना के विषय में सामान्य नियमों के ज्ञान को भुला देने के समान है। फिर यह भी निश्चय रूप से नहीं कहा जा सकता कि इन्द्रिय की शक्ति उसके आकार पर अवलम्बित है। प्रकृति की सम्पूर्ण रचना में सजीव सृष्टि सब से अधिक नाज़ुक है और उस में भी ज्ञान-तन्तुओं की कृति तो अत्यन्त सूक्ष्म है। प्रकृति की कृतियों के सम्पूर्ण सूक्ष्म व्यापारों में यह एक निश्चित नियम मालूम होता है कि, भिन्न-भिन्न इन्द्रियों के व्यापार से उत्पन्न होने वाले परिणाम में जो भेद होता है, वह जितना इन्द्रिय के आकार पर अवलम्बित है उतना ही उस इन्द्रिय की रचना पर भी अवलम्बित है। यदि किसी यन्त्र की रचना उसके बड़े आकार पर न समझी जाकर उसके कार्य्य की सूक्ष्मता और सुन्दरता पर समझी जाय-यदि यह नियम सत्य हो, तो स्त्रियों के मस्तिष्क पुरुषों के मस्तिष्क से अधिक सूक्ष्म होने चाहिएँ-यह स्पष्ट है। इन्द्रिय-रचना के भेद को निश्चित करने का काम महा कठिन है, इसलिए इसे छोड़ते हैं पर इन्द्रिय की कार्य्यशक्ति का आधार जितना उसके आकार पर होता है, उतना ही उसकी चपलता पर भी होता है-और इस चपलता को निश्चित करने का काम उससे
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