संयम भी दृढ़ होता है-अर्थात् आत्मनिग्रह के काम में भी वे वीर होते हैं, पर मैं ऊपर जो कुछ कह आया हूँ वैसा मार्ग उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें आत्मनिग्रह की शिक्षा मिलनी चाहिए। यदि उन्हें वह शिक्षा मिले तो मन में आते ही वे उस काम को एकदम कर डालने वाली प्रकृति के होते हैं, और आत्मनिग्रह के काम में भी वे पूर्ण रीति से चमक उठते हैं। पिछले इतिहास और हमारे अनुभव से यह सिद्ध होता है कि, जिनके मनोविकार अत्यन्त प्रबल और तीव्र होते हैं, उन्हें जिस ओर झुका दिया जायगा-उस ही कर्त्तव्य-पालन में वे आमरण दक्षता से लगे रहेंगे। किसी काम से न्यायाधीश का झुकाव एक ओर हो जाने पर भी-फिर जो वह बराबर तुला हुआ फैसला करता है तो उसी आत्म संयम और दृढ़ निश्चय से-उसकी न्यायबुद्धि को बारम्बार दृढ़ बनाने में उत्तेजना मिलती है, और इसलिए मनोजय करने वाली उसकी भक्ति बलवान् होती जाती है। जिस प्रासङ्गिक उदात्त उल्लासवृत्ति के कारण मनुष्य एक समय में अपना वास्तविक स्वभाव भूल जाता है, वह उल्लास-वृत्ति उसके स्वभाव पर विशेष असर किये बिना नहीं रहती। प्रसङ्ग के अनुसार जो इस प्रकार की स्थिति हो जाती है, तथा इस स्थिति में अपनी महत्त्वाकाङ्क्षा और अपनी सामर्थ्य का जो अनुभव होता है-उस के साथ ही वह अपने अन्य समय के विचार और बर्ताव की समानता करके देखता है-और इस को ही अनुकरण