ही ऐसा होता है कि एक बार वे जी लगा कर जिस काम में लग जाते हैं-फिर उसे पूरा करने तक समान भाव से वैसे ही लगे रहते हैं। व्यवहार में लोग जिसे "पानी" कहते हैं, यह वही गुण है। घुड़-दौड़ में शर्त जीतने वाले "पानीदार" घोड़े कमर या पैर के टूटने तक समान वेग से भागे चले जाते हैं-वे इसी गुण के कारण। कमज़ोर और नाज़ुक स्त्रियों पर अत्याचार किया जाता है, उन पर शारीरिक और मानसिक सङ्कटों की बौछार होती रहती है, और अन्त में सिसका-सिसका कर बेरहमी से उनकी जान ली जाती है-पर वे अपने दृढ़ निश्चय को नहीं छोड़तीं और हजार आपत्ति सह कर भी अपनी मर्य्यादा भङ्ग नहीं होने देतीं-वह इस ही गुण के कारण। यह स्पष्ट है कि, इस प्रकृति वाले व्यक्ति मनुष्य-समाज के उच्च अधिकार भोगने योग्य है। इस प्रकृति वालों में बड़े-बड़े व्याख्यानदाता, लेखक, धर्म्मोपदेशक, तथा लोगों के अन्तःकरण पर उत्कृष्ट चरित्र की मुहर लगा देने वाले व्यक्ति अधिक निकलने सम्भव हैं। सम्भवतः, कोई यह समझता होगा कि, इस प्रकृति वाले व्यक्तियों में न्यायाधीश
या मन्त्री आदि के गुण कम होते होंगे; किन्तु यह मानने का कारण उन्हीं व्यक्तियों के विषय में हो सकता है जो हर समय आवेश ही आवेश में रहते हों-किन्तु इस प्रकृति की किसी इष्ट दिशा की ओर झुका देना शिक्षा का काम है। जिनके मनोविकार तीव्र और वेगशाली होते हैं उनका आत्म-
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