कि, ऐसी प्रकृति वाली स्त्रियों की संख्या पुरुषों की संख्या से कहीं अधिक है; पर साथ ही इस विषय में, मैं यह प्रश्न भी करता हूँ कि क्या ऐसी पित्त-प्रकृति वाले पुरुष, पुरुष-वर्ग के करने योग्य कामों के अयोग्य समझ जाते हैं? यदि वे अयोग्य न समझे जाते हों तो उसी प्रकृति वाली स्त्रियाँ क्यों अयोग्य
समझी जाती हैं। यह ठीक है कि, बहुत से धन्धों में अधिकांश यह प्रकृति अयोग्य होती है-पर साथ ही यह भी निश्चित है कि बहुत से धन्धों में यही प्रकृति विशेष उपयोगी भी होती है। इसके साथ ही यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि, इस प्रकृति वाले मनुष्य जिस काम में लगे होते हैं-फिर वह चाहे उनको प्रकृति के अनुकूल हो या प्रतिकूल पर हमारे देखने में ऐसे बहुत से उदाहरण आते हैं जिन में उन्हें पूरी सफलता हुई है। अन्य शान्त और सतोगुणी प्रकृति वाले मनुष्यों की अपेक्षा ऐसे मनुष्यों में प्रवेश अधिक होता है, जब ये आवेश में होते हैं तब उनकी शक्ति कई गुणी अधिक दीप्त हो उठती है और उस समय उन्हें अपनी भी याद भूल जाती है-और इसलिए स्वस्थ दशा में जो काम उन के हाथ से नहीं हो सकते, उन्हें आवेश की दशा में वे सरलतापूर्व्वक कर डालते है। फिर यह आवेश या प्रोत्साहक गुण क्षणिक नहीं होता-यह गुण ऐसा नहीं होता कि बिजली की तरह चमक कर लोप हो जाय और फिर कुछ रहे ही नहीं। तामसी और पित्त-प्रकृति वाले मनुष्यों का स्वभाव
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