अत्यन्त उदात्त और महत्व के तत्त्वचिन्तन का योग्य विषय समझती है। जो अध्ययनशील मनुष्य अनुभव और अवलोकन के द्वारा केवल ज्ञान का सम्पादन करने में लगा रहे, और इस प्रकार प्राप्त हुए ज्ञान पर बड़े-बड़े व्यापक प्रभेद पैदा करके शास्त्रीय सत्य या आचार के नियम निश्चित करने के काम में प्रवृत्त होना चाहता हो-और इसे वह वास्तविक बुद्धि-सम्पन्न स्त्री की देख-रेख या सलाह से करे, तो उसे विशेष लाभ होना सम्भव है। उसके ऊपर उड़ते हुए विचारों को प्रत्यक्ष प्रदेश में तथा संसार में वास्तविक रीति से घटने वाली मर्यादा के भीतर रखने का इससे अच्छा साधन और कोई नहीं हो सकता। क्योंकि केवल कल्पित दृष्टि पर ही रीझने वाली स्त्री भाग्य से ही खोजे मिलेगी। स्त्री के मन का झुकाव सब वर्गों की अपेक्षा नीचे वर्ग पर अधिक होता है, और उनके चित्त वर्तमान क्रिया या मनोवृत्ति को विशेष सोचते हैं, इसलिए जब कोई प्रत्यक्ष व्यवहार में प्रचलित करने योग्य बात उनके सामने आती है तब वे सब से पहले यह विचार करती हैं कि, इसके प्रचलित होने पर लोगों की दशा क्या होगी। इन दोनों गुणों के कारण, जिस कल्पना या व्यवस्था में वास्तविक व्यक्ति का सम्बन्ध नहीं माना गया है, जिस में सजीव प्राणियों के अन्तर्गत मनोभावों का विचार नहीं किया गया, और जिस वस्तुमात्र की स्थिति केवल एक-आध कल्पित प्राणी या व्यक्ति समुदाय का हित लक्ष्य में रख कर बनाई गई हो, जो
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