सम्बन्ध नहीं होता। सृष्टि के जो शास्त्रीय नियम निश्चित हुए हैं, वे क्या किसी प्रेरणाशक्ति से स्फुरित हुए हैं? इस ही प्रकार कर्त्तव्य के विषय में तथा बुद्धिमत्ता और शिष्टाचार के नियम भी किसी मनुष्य की प्रेरणाशक्ति से सूझे हों, यह कभी नहीं हो सकता। इस प्रकार के जो-जो नियम निश्चित हुए हैं, वे बहुत दिनों का अनुभव एकत्र करके, तथा बहुत बातों की तुलना करके, बड़ी सावधानी और शान्तता से विचार करके निश्चित होते हैं। जिनकी प्रेरणाशक्ति सब से अधिक हो वे स्त्री पुरुष इस विषय में कभी आगे नहीं बढ़े। अपवाद केवल इतना ही है कि इन नियमों को निश्चित कर लेने के लिए जितने अनुभव की आवश्यकता होती है वह यदि बाहरी सहायता के बिना पूरा मिल सका हो, तो उनके हाथ से भी ये नियम निश्चित हो सकते हैं-यह हो सकता है। क्योंकि उनकी प्रेरणाजन्य तीक्ष्ण बुद्धि के कारण स्वावलोकन के जो साधन उन्हें प्राप्त होते हैं उनसे सामान्य नियम बना लेने की योग्यता आती है, इसलिए जो स्त्रियाँ पुरुषों की तरह पठन-पाठन और शिक्षा के द्वारा लोगों का अनुभव प्राप्त करने
में भाग्यशाली हो सकती हैं, (भाग्यशाली कहने का अभिप्राय यह है कि, संसार के बड़े-बड़े काम करने की योग्यता जिस शिक्षा या ज्ञान के द्वारा हो सकती है उस ज्ञान को स्त्रियाँ केवल आत्मशिक्षा से ही प्राप्त कर सकती हैं। वे व्यवहारदक्षता का ज्ञान पुरुषों से कहीं अधिक पा सकती हैं।
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