कम्पनियों के संस्थापकों और सार्वजनिक संस्थाओं के सञ्चालकों की स्त्रियाँ, बहनें और पुत्रियाँ क्या अपने-अपने घरवालों का काम चलाने के अयोग्य है? क्या उन्हें अयोग्य मानने का कोई ख़ास कारण है? सच्चा कारण जो कुछ है वह स्पष्ट है; राजघराने में पैदा होने वाली स्त्रियाँ स्त्री होने के कारण पुरुषों से नीची अवश्य समझी जाती हैं, किन्तु कुलीनता के कारण वे अन्य पुरुषों से उच्च होती हैं। इसलिए उन्हें किसी समय इस प्रकार की शिक्षा नहीं दी जाती कि स्त्रियों को राजकार्य में हाथ न डालना चाहिए, यह स्त्रियों को शोभा नहीं देता; बल्कि चारों ओर वैसी ही घटनाओं का सन्निवेश होने के कारण एक स्वाभाविक हौंस का जागना आवश्यक है, और कभी-कभी उन घटनाओं में भाग लेने की भी उन्हें आवश्यकता आही जाती है-इसलिए राजनैतिक विषयों में सोचने-विचारने और भाग लेने की उन्हें
स्वाधीनता होती है। संसार में यदि कुछ ऐसी स्त्रियाँ हैं जिनके लाभ की संख्या पुरुषों के समान है और जिनकी शक्तियों का विकाश पुरुषों के समान स्वाधीनतपूर्वक होने दिया जाता है, तो वे राजकुटुम्ब की ही स्त्रियाँ है। और इस ही बात के कारण राजघराने की स्त्रियाँ पुरुषों से किसी बात में कम नहीं होती। जिस-जिस स्थान पर, जिस परिमाण में स्त्रियों को राज्याधिकार भोगने और उनका कर्त्तव्य पूरा
करने की शक्ति कसौटी पर पजोखी गई है, उन-