पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१८०

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १५९ )


सकती हैं, उन्हें अभी हम एक ओर छोड़ देंगे-अर्थात् स्त्री पुरुष की मानसिक शक्ति में जो भेद माना जाता है, वह किसी प्रकार प्रकृतसिद्ध या स्वाभाविक नहीं है बल्कि कृत्रिम है,-स्त्री वर्ग और पुरुष-वर्ग में जो भेद रक्खा जाता है, तथा प्रत्येक वर्ग के चारों ओर जिन भिन्न-भिन्न कारणों का संयोग बना रहता है, उस भिन्नता के ही कारण उन की बुद्धि-सामर्थ्य में भी अन्तर होता है-ऐसे निश्चय पर हम जिन विचारों की सहायता से पहुँच सकते हैं, उन्हें अभी हम छोड़ते हैं। इस समय हम यही उठाते हैं कि पहले स्त्रियाँ कैसी थीं और अब कैसी हैं-अर्थात् प्रत्यक्ष रीति से स्त्रियों ने अपनी बुद्धि-सामर्थ्य का कितना परिचय दिया है। अधिक नहीं तो जितने काम स्त्रियाँ अब तक कर सकी हैं उतने तो सदैव कर ही सकेंगी-अर्थात् इस बात को तो स्वयंसिद्ध समझना चाहिये कि उतनी शक्ति तो उन में है ही। जिन उद्योग-धन्धों या व्यवसायों की शिक्षा केवल पुरुषों के ही लिये रक्खी गई है और स्त्रियों को जिनके विषय में कुछ भी बताया नहीं गया, बल्कि उसके ख़िलाफ़ शिक्षा देकर उनके मनकी उन उद्योग-धन्धों या व्यवसायों से फिरा देने की पूरी कोशिश की गई है-इस बात को जब हम अपने लक्ष्य में रक्खे हुए ऐसे उदाहरणों पर दृष्टि दौड़ाते हैं, जिन्हें आजतक स्त्रियों ने पूरे करके प्रत्यक्ष दिखा दिये हैं, मैंने इस प्रकार स्त्रियों की बुद्धि-सामर्थ्य नापने का जो निश्चय