पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१७०

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ओर स्त्री अपनी कमाई से गृहस्थी का भरण-पोषण करती हो-तो इससे स्त्री को लाभ होगा; क्योंकि क़ानूनन पुरुष स्त्री का अधिकारी है और इस बात से उसकी नज़र में स्त्री की क़ीमत अधिक होती है; पर कई बार इस बात का दुरुपयोग भी होता है, क्योंकि फिर पति स्त्री को कुटुम्ब का पोषण करने के लिए मजबूर करता है, और घर का सब बोझ उस बिचारी के सिर डाल कर स्वयं आलस्य या मद्यपान में अपना समय बिताता है। किसी प्रकार की मौरूसी मिल्कियत न रखने वाली स्त्रियों के लिए स्वतन्त्र रीति से द्रव्योपार्जन की शक्ति रखना अपनी प्रतिष्ठा का अच्छा प्रमाणपत्र है, किन्तु विवाहित दशा में यदि दोनों के अधिकार समान माने जाने की रीति हो, और एक को दूसरे की अधीनता न सहनी पड़ती हो, अर्थात् जिस पक्ष पर बलात्कार होता हो वह प्रकार न घटने दिया जाता हो, और स्त्री के योग्य कारण बताने पर पति से भिन्न रहने और स्वाधीन व्यवसाय करने की आज़ादी हो, अर्थात् इस प्रकार की अनुकूलताएँ हों तो विवाहित दशा में द्रव्योपार्जन की शक्ति को काम में लाने का अवसर ही स्त्री को नहीं मिलेगा।

जब पुरुष उदर-निर्वाह के लिए किसी काम को पसन्द करता है, तब साधारण तौर पर यह समझा जाता है कि वह अपनी शक्तियों का उपयोग उस ही ओर करने के लिए विशेष उपयुक्त है। उस ही प्रकार जब स्त्री विवाह करती