पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१६४

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १४१ )


की पात्री समझते हैं, वैसा बर्ताव वे किसी अन्य स्त्री या पुरुष से नहीं करते। मनुष्य के ऊपरी चिन्हों से हृदय की बात जानने की सूक्ष्म दृष्टि वाले जो पुरुष हैं, वे यदि योग्य प्रसङ्गों पर इस बात का ख़याल रख कर देखेंगे तो मैंने जो कुछ ऊपर कहा है वह अक्षर-अक्षर ठीक मालूम हुए बिना न रहेगा। और यदि बारीकी से जाँचने के बाद मेरी बात पूरी उतरे, तो जिस रूढ़ि के प्रचार से मनुष्य के मन इतने कलुषित होने सम्भव हैं, उस से उन्हें धिक्कार और घृणा हुए बिना न रहेगी।

१४-इस स्थल पर कदाचित् यह प्रश्न बहुत से करेंगे कि स्त्रियों को पति की आज्ञा में रहना धर्मशास्त्र के अनुसार है। हमारा यह अनुभव है कि, लोग बुद्धिवाद से जिस की रक्षा नहीं कर सकते उस के विषय में धर्मशास्त्र की आड़ पकड़ लेते हैं। अवश्य ईसाई धर्म के अनुसार जो सूत्र-ग्रन्थ लिखें गये हैं उन में ऐसी आज्ञाओं का उल्लेख है, किन्तु प्रत्यक्ष ईसाई धर्म में किसी स्थल पर ऐसा शासन नहीं दीख पड़ता-धर्म के मूल तत्त्वों के सहारे भी यही अनुमान सिद्ध होता है। ऐसे लोग कहते हैं कि सेन्टपाल ने लिखा है-"स्त्रियों, तुम अपने स्वामियों की आज्ञा में रहो।" पर यही महापुरुष एक स्थान पर यह भी लिखता है कि, "ग़ुलामो, तुम अपने मालिकों की आज्ञा में रहो।" सेन्टपाल का उद्देश ईसाई धर्म का फैलाना था, इसलिए प्रचलित लोक-रीति और क़ायदे-