पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१६१

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मैं यह स्वीकार करता हूँ कि क़ायदे की वर्तमान स्थिति में जो बहुत से स्त्री-पुरुष परस्पर समानता का ही व्यवहार रखते हैं, और उनके व्यवहार में इतना सीधा-पन है, यानी वे प्रकृत क़ानून का ही पालन कर रहे हैं। और मुझे स्त्री-पुरुषों की समानता वाले तथ्य पर जो यह आशा होती कि एक दिन यह सर्वमान्य होगा––वह भी इसी बुनियाद पर। क्योंकि जिन के नैतिक विचार प्रचलित क़ानून से आगे बढ़े हुए या सुधरे हुए हों, ऐसे पुरुषों की तादाद जब बढ़ती है तभी क़ानून में सुधार होता है, अर्थात् ऐसे सुधरे हुए बहुसंख्यक मनुष्यों का हो जाना ही क़ानून सुधरने का समय आ जाना है। इस ग्रन्थ के द्वारा मैं जिन विचारों का प्रतिपादन