शिक्षा के प्रचार से ऐसे भेद मिटते गये और यह सिद्धान्त सर्व्वमान्य हुआ कि जाति या क़ौम के अनुसार सामाजिक भेद न माना जाकर सब मनुष्यमात्र समान माने जायँ। जिस समय ऐसे-ऐसे भेद मिटने लगे थे उस समय उत्तर देश वाले लोगों ने सब देशों को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया, और अपना राज्य दृढ़ बनाये रखने के लिए उन्होंने फिर से उस व्यवस्था को ज़िन्दा किया। एक प्रकार से अर्व्वाचीन इतिहास इस भेद को धोरे-धीरे, किन्तु नियमित शक्ति से, दूर हटाने का इतिहास है। इसके बाद जिस ज़माने का प्रादुर्भाव होना है, उस में न्याय को सब अच्छे गुणों से पहला स्थान मिलेगा, और यह न्याय की नींव पहले के समान समता के तत्त्व पर रहेगी, तथा सहानुभूति का गुण भी इसका सहकारी होगा। जैसे पहले लोग स्व-संरक्षण के लिए ही एक दूसरे से समानता का व्यवहार करते थे, वैसे अब न होगा, बल्कि अब एक दूसरे के साथ दया और प्रेम उत्पन्न होगा। इस अवसर पर संसार का कोई मनुष्य भिन्न न रह सकेगा, बल्कि सब के साथ समान व्यवहार होगा। आने वाले ज़माने में लोगों का व्यवहार-क्रम कैसा परिवर्त्तित होगा। इसका अनुमान अभी लोग कर भी नहीं सकते, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लोगों के विचार और मनोभाव भूतकाल के अनुसार होते हैं, तथा आगे आने वाले समय के अनुसार कभी नहीं हुआ करते-और साधारण तौर पर लोगो को इसका
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