उच्च रहना आवश्यक है, उनका कथन यथार्थ नहीं है; इस ही प्रकार यह सिद्धान्त भी ग्राह्य नहीं हो सकता कि क़ानून के अनुसार यह स्थिर किया जाय कि उन दोनों में किसे उच्च पद दिया जाय। दो मनुष्यों के प्रसन्नता से बाँधे हुए सम्बन्ध का उदाहरण विवाह-सम्बन्ध है। इस ही प्रकार के दूसरे उदाहरण उद्योग-धन्धे और व्यापार के सम्बन्ध में है। जो कई मनुष्य बराबर का हिस्सा लेकर किसी व्यापार को करना शुरू करते हैं, उनमें इस प्रकार का नियम बनाने की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती कि सब अधिकार एक हिस्सेदार के हाथ में रहेंगे और बाकी हिस्सेदार उसके ताबे में रह कर केवल आज्ञापालन करेंगे। क्योंकि कोई हिस्सेदार इस बात को मञ्जूर करे हीगा नहीं कि उसके सिर जवाबदारी तो मालिकपन की हो और अधिकार केवल गुमाश्तगीरी के हों। वैवाहिक सम्बन्ध के विषय में क़ायदा जिस तरीक़े पर चलता है, यदि वही तरीक़ा अन्य सम्बन्धों में भी माना या प्रचलित किया जाय तो, उसका स्वरूप इस प्रकार हो कि, दूकान का तमाम कारोबार और उससे सम्बन्ध रखने वाले तमाम हक़ केवल एक आदमी के हाथ में सौंप दिये जायँ, और उसे तमाम काम अपने घरू स्वाधीन कामों के अनुसार करने चाहिएँ, और बाक़ी के हिस्सेदारों को उतने ही पर खुश रहना चाहिए जितने वह अपने आप उन्हें दे। और जो भागीदारों का एक सर्वस्व या सत्तीधीश बनाया जाय, वह
पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१४३
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १२० )