घर के काम-काजों को छोड़ कर बाहर के व्यवहारों में मन लगाना या सोचना स्त्री-जाति का काम ही नहीं है। इसलिए ऐसी बातों का विचार वे तभी करती हैं जब या तो उनके सिर उसकी जवाबदिही हो या उनका कोई ख़ास स्वार्थ हो। राजनैतिक बातों में उन्हें यह ख़बर ही नहीं होती कि सच्चा पक्ष कौन सा है और झूठा कौन सा है; पर अपने घर में धन या प्रतिष्ठा किस प्रकार होगी, अपने पति को कोई बड़ी पदवी किस प्रकार मिलेगी, अपने पुत्रों को अच्छे पद किस प्रकार मिलेंगे, या अपनी कन्याको अच्छा पति किस प्रकार मिलेगा-इन सब बातों का उन्हें पूरा ख़याल होता है।
६-इस स्थल पर शायद यह प्रश्न उठेगा कि, एक मनुष्य के हाथ में नियामक और निर्णायक सत्ता आये बिना समाज की गाड़ी किस प्रकार चल सकती है? राज्य के समान कुटुम्ब को चलाने वाला एक अधिकारी या सत्ताधीश होना ही चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा न होगा तो एक बात में मान लो कि मालिक और मालकिन में मतभेद हो गया; ऐसी स्थिति में उनका निर्णय कौन करेगा? कोई काम दोनों की मन्शा के मुताबिक़ तो हो ही नहीं सकता; चाहे जैसा हो उसका निर्णय करना ही होगा। ऐसी दशा में बड़ी गड़बड़ होगी। इस शंका का समाधान नीचे के अनुसार है।
७-जिन मनुष्यों का यह कहना है कि जिन दो मनुष्यों ने प्रसन्नता से अपना सम्बन्ध स्थिर किया है, उन में एक का