संख्या सब से अधिक होती है, अर्थात् संसार साधारण दुष्ट वर्ग वाले मनुष्य सब से अधिक है। संसार के मुकुट की मणियों के समान सहज सज्जन-वर्ग वाले महापुरुषों को सर्वोच्च शिखर पर रक्खा जाय, और एक राक्षस वृत्ति वाले पिशाचों को फंदे में रक्खा जाय, तो स्वार्थी. बनावटी, तथा समय देख कर पशु-वृत्ति पूरी करने वाले मध्य श्रेणी के मनुष्यों की तादाद बीच में रखी जायगी। बहुत मे मनुष्य बाहरी चाल-चलन, बोल-चाल और व्यव हार में प्रतिष्ठित जान पड़ते हैं, तमाम बाहरी व्यवहारों में वे क़ा नून के सामने सिर झुकाकर चलते हुए मालूम होते हैं, उन व्यक्तियों के साथ वे बड़ी ही नर्मी और सभ्यता से पेश अति देखे जाते है जिन पर उनका दबाव नहीं पड़ता, पर भीतर से वे ऐसे दुष्ट होते हैं कि जो अभागा प्राणी उनके आश्रय में आपड़ा है,
जिसे संसार भर में केवल उन्हीं का सहारा है उससे वे त्राहि-
त्राहि कराते है; उस प्राधीन प्राणी पर उनका ज़ुल्म इतना धुणित और कड़ा होता है कि उसे अपना जीवन भार और समय काटना आफ़त मालूम होता है। मनुष्य को अनियन्त्रित सत्ता के अयोग्य सिद्ध करना, उदाहरण और दलीलें देना, इसका पिष्टपेषण करना ही है, पाठकों का समय व्यर्थ लेना है; क्योंकि भिन्न-भिन्न राज्य-पद्धतियों के विषय में कई शताब्दियों तक लोगों में जो चर्चा चली थी, वे सब दलीलें सभ्य देश वालों को ज़ुबानी याद हो गई है, फिर भी एक
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