सकता है कि उसका पति उस सम्पत्ति की पैदाइश बालाबाला नहीं ला सकता-यानी उसकी आमद भी बेटी के ही हाथ में पहुंँचे। पर स्त्री के हाथ में आई हुई रक़म उसका पति यदि ज़बरदस्ती भी उससे छीनले तो उसकी फ़र्याद सुनने वाला कोई नहीं है। छीन लेने पर उसे क़ानूनन सज़ा भी नहीं होसकती और यह आज्ञा भी नहीं दी जासकती कि स्त्री को वह रकम वापिस देवे। इस देश (इँग्लैण्ड) के नियमों के अनुसार सब से अधिक प्रबल भूस्वामी-वर्ग भी यदि अपनी पुत्री की पति से रक्षा करना चाहे तो वह भी मजबूर है*[१]। बाक़ी और स्त्रियों के साथ तो इस प्रकार की कोई व्यवस्था होती ही नहीं, इसलिए स्त्रियों के तमाम अधिकार, सम्पूर्ण सम्पत्ति, सम्पूर्ण व्यावहारिक स्वाधीनता पर पति का पूरा अधिकार हो जाता है। क़ानून की दृष्टि में स्त्री और पुरुष मिल कर एक व्यक्ति ही माना जाता है, पर इसका अर्थ इतना ही होता है कि जो कुछ स्त्री का है वह
उसके पति का ही है। इससे उलटा यह अर्थ कोई नहीं करता कि जो कुछ पति का है वह सब स्त्री का ही है।
- ↑ * इस पुस्तक के प्रसिद्ध होने के बाद स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए इँग्लैंड में बड़ा शोर मचा था। और उसके परिणाम में १८०० ई॰ में Married women's property act नामक कानून प्रचलित किया गया था, इसमें स्त्रियों को अपनी सम्पत्ति के थोड़े हक मिले थे, पर सम्पत्ति के सम्बन्ध में पूरी स्वाधीनता १८८२ ई॰ के कानून से हुई है।