डेलफीन (Delphine) के मुख-पृष्ट पर जो सांकेतिक वाक्य दिया गया है वह, Un homme pent biaver I' opinion; une femnae doit s'y soumettre अर्थात् "लोक-मत को कुचल कर चलने का साहस पुरुष-वर्ग ही कर सकता है; किन्तु स्त्री-वर्ग को तो उसके सामने सिर झुकाकर ही चलना
पड़ता है।" इस समय स्त्रियों के हाथ का जो कुछ लिखा हुआ देखने में आता है, उस से साफ़ मालूम होता है कि इसमें उन्होने केवल पुरुषों की खुशामद की है। और स्त्रियों में कुमारी-वर्ग दो द्वारा*[१] जितने लेख लिखे जाते हैं, उनमें
अधिक का उद्देश अच्छा पति प्राप्त करना ही होता है बहुत बार तो कुमारी और विवाहिता दोनों ही प्रकार की स्त्रियाँ अपने ग्रन्थों में पुरुषों की इतनी खु़ुशामद करती हैं कि उन ग्रन्थों के द्वारा स्थापित की हुई स्त्रियों की पराधीनता से अत्यन्त नीच प्रकृति वाले पुरुषों का ही मनोरञ्जन हो सकता है। किन्तु यह प्रणाली अब पहले की अपेक्षा कम दिखाई देती है। दिन पर दिन ग्रन्थ और लेख लिखनेवाली स्त्रियाँ अधिक स्पष्ट-वक्ता बनती जाती हैं; और अपने वास्तविक विचार प्रकट करने में दिन पर दिन अधिक उत्सुक
- ↑ * भारत के सिवाय और कहीं बाल विवाह नहीं है। पूर्ण युवा न होने तक स्त्री-पुरूषों का विवाह नहीं होता। इसीलिए योरप की स्त्रियाँ कुमारी दशा में ही लेखिका और ग्रंथकार बन जाती हैं। तथा इस स्थल को बहुत सी बातें योरप की ही समाज-व्यवस्था से सम्बन्ध रखती हैं।