जब कभी आवेगा, तब वह धीरे ही धीरे आवेगा। स्त्रियों को शिक्षा मिलते हुए थोड़ा ही समय बीता है, उन्हें जो कुछ कहना हो उसे वे निडर होकर कह सकती हैं,-इसे भी समाज ने अभी-अभी ही स्वीकार किया है। स्त्रियों की साहित्य-विषयक प्रवृत्ति की सफलता का आधार पुरुषों की प्रसन्नता पर अवलम्बित होने के कारण, पुरुषों के हृदयों में चुभने वाले विचार प्रकट करने की हिम्मत बहुत कम स्त्रियाँ कर सकी है। स्त्रियों की बात तो एक ओर रही, पुरुष-लेखक भी प्रचलित रीति-रिवाज, आचार-विचार, धर्म,
सम्प्रदाय और सर्वसाधारण में पूर्ण रूप से प्रचलित बातों के विरुद्ध कलम उठाते हुए हिचकते हैं, और जिन ग्रन्थकारों ने निर्भीक होकर लिखा है उनके विरुद्ध कटाक्ष अब तक बन्द नहीं हुए, फिर जिन स्त्रियों के ऐसे विचार बना डाले गये हैं कि प्रचलित लोक-रीति और प्रचलित बातों के ज़रा ख़िलाफ़ होना भी पाप है, उन स्त्रियों के पढ़-लिख कर लिखे हुए कुछ ग्रन्थों और लेखों से यह आशा रखना ही व्यर्थ है, कि
उनमें उनके गहरे हार्दिक विचारों का चित्र होगा। इन बातों से मालूम होगा कि स्त्री-ग्रन्थकार के मार्ग में कितनी बाधाएँ और विघ्न है। मेम डी स्टेइल (Mme. de stail) नामक एक विदुषी स्त्री फ्रान्स देश में हो गई है। इस प्रतिष्ठित स्त्री ने जो ग्रन्थ लिखे हैं, उनके कारण देश के साहित्य में उसका नाम बहुत उच्च है। इसके लिखे हुए प्रसिद्ध ग्रन्थ
पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१०२
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ७९ )