पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१००

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ७७ )


नहीं आता; क्योंकि उनका सम्बन्ध इसके ख़िलाफ़ है। अपने अधिकारी के मन में अपने विषय में जो कुछ उच्च विचार होते हैं, या जो कुछ उसका स्नेह होता है, उसमें किसी प्रकार का अन्तर न होने देने के लिए प्रत्येक मनुष्य ऐसा चौकन्ना रहता है कि वह चाहे जैसा प्रामाणिक और सच्चा हो फिर भी अधिकारी के सामने अपने उन्हीं विचारों को प्रकट करता है जो उसे अच्छे लगा करते हैं, इसलिए यह बात दावे से कही जा सकती है कि जिनमें कुछ भी ऊँच-नीच का सम्बन्ध होता है वे परस्पर हृदय का हाल नहीं जान सकते; और जो समान अवस्था वाले या दिली दोस्त होते हैं वे ही एक दूसरे के मन की बात समझ सकते हैं और वे ही एक दूसरे को वास्तविक रूप से पहचान सकते हैं। फिर स्त्रियों की बात तो इससे कहीं निराली है। स्त्रियाँ दूसरों के अधीन होती हैं, इतना ही नहीं, बल्कि-"जिससे पति की आत्मा प्रसन्न हो, पति को सब प्रकार से सुख हो, ऐसे बर्ताव के लिए ही हमारा जन्म हुआ है; और हमें ऐसा एक भी काम नहीं करना चाहिए जो पति की मन्शा के ख़िलाफ़ हो" इस तरह की समझ उनके पैदा होते ही बना डाली जाती है, और इसी तरह की शिक्षा उन्हें जन्म-भर चारों ओर से दी जाती है। इन सब बाधक कारणों के होते हुए, जिसके स्वभाव, विचार और मनोधर्म का पूरा अनुभव प्राप्त करने के लिए विशेष अनुकूलता मिलती है-उस अपनी स्त्री के विषय में