[चौरान पदभ्रष्ट एवं
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और जिनको लेनिन के समय उत्तरदाय पदों पर नियुक्त किया गया था। यह बात विचारणीय है कि किसी प्रकार सबल सत्ताधारी विधि-वामता के कारण वह अपमानित किये गए। कान्ति के सनातन अटल नियम का इस दशा में भयानक परिणाम हुआ। बोल्शेविक क्रांति के नेताओं ने आरम्भ में दूसरी श्रेणि के नेताओं को मरवाया। बाद में वह अपने अपनों ही के विरुद्ध हो गए। जो व्यक्ति परस्पर संगठित होकर एक साथ कार्य करके अपने बहुमत से दूसरों के लिये दण्ड की आयोजना किया करते थे, वही पारस्परिक रोष के लक्ष्य बनने प्रारम्भ हो गए। साधारण जनता इस कत्ले आम को भय के साथ देखती रही। किन्तु वह कर भी क्या सकती थी। सभी लोग इस बात पर आश्चर्यचकित थे कि जिन लोगों ने क्रान्ति को भारी सेवाएं की थीं, वही इस क्रान्ति में रौंदे जा रहे हैं। लेनिन को राजनीतिक भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य प्रमाणित हुई। उस ने सोलहों आने सत्य कहा था कि "स्टालिन और ट्रॉट्स्की के पारस्परिक सम्बन्ध दल में फूट डलवाने का सरल साधन बन सकते हैं।" इस विषय में यह भविष्यवाणी इतनी सत्य प्रमाणित हुई कि फूट ने क्रियात्मक रूप धारण कर लिया। किन्तु इस भविष्यवाणी में यह उल्लेख न था कि वैमनस्य के पश्चात् घटनाएं कौनसा रूप धारण करेंगी? दोनों प्रतिद्वन्द्रियों में किसकी शक्ति जबर्दस्त निकलेगी ? मुकाबले में कौन पाजी ले जावेगा ? आदि आदि । किन्तु साधारण जनता का विचार है कि इस कत्ले-आम के पश्चात् स्टालिन ने परिस्थिति पर इतना काबू पा लिया कि ट्रॉटस्की के अनुगामी अपनी विद्यमानता से रूस में स्टालिन के लिये कोई विशेष ख़तरा उत्पन्न नहीं कर सकते।