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[चौरासी न दिया। किन्तु तथ्य यह है कि यहीं से इन दोनों व्यकियों में पारसिक उत्पाद का प्रारम्भ हुमा । लेनिन ने अपने बसीयवनामे में लिखा था, "चाल्शेविक रूस के प्रबन्ध-सम्बन्धी कार्यों का स्टालिन और ट्रॉदरको परस्पर निर्णय करले।" एक दृष्टि से यह एक उचम बात थी। जिनका पारस्परिक मतभेद इतना अधिक हो ऐसे दो व्यक्ति परस्पर मिल कर अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं। किन्तु क्रियात्मक रूप में यह हुमा कि उनके बुरे स्वभाव और स्वच्छन्दवा ने उनके दैनिक जीवन में मिठास के स्थान पर अधिक कटुता उत्पन्न कर दी। जहां मतभेद हों, भगड़े जरूर होते हैं। लेनिन को यह भविष्यवाणी सही होकर रही। परसर टक्कर शुरू हो गई। संघर्ष प्रारम्भ होने से पूर्व दोनों ने अपने पक्ष में मित्रों को समर्थक बनाने के लिये बड़े प्रयत्न किये। लेनिन की मृत्यु के समय ट्रॉटस्की पद की दृष्टि से अधिक सुरक्षित था। वह जनवा मे अधिक प्रसिद्ध भी था। सर्वसाधारण पर उसका प्रभाव भी अच्छा पड़ता था। उसने गृह-युद्ध के तीन वर्षों में अपनी प्रसिद्ध गाड़ी द्वारा देश के प्रत्येक भाग में भ्रमण किया था। उसने रूस की मस्त व्यस्त लाल सेना को संगठित किया था। देश का प्रत्येक सिपाही उसका समर्थक एवं प्रशंसक था। सेना के सभी युवक घरमा लगाने वाले इस साल मार्शल के सबखत्यागी अनुगामी थे। यदि ट्रॉदस्की में इस अवसर पर मावश्यक कृति, वत्परता और कार्यारम्भ-शक्ति होती और साथ ही वह ठीक ढंग पर अपने प्रचार कार्य को बारी रखवा वो निसन्देह वह बिना विशेष प्रयल के लेनिन का कार्य संभाल कर रूस का सर्वाधिकारी नेवा बन जावा । परन्तु ट्रॉद्स्की अपने जीवन में शायद पहली बार मिझक और न्यथ के सोच विचार में पड़ गया।