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[अठहत्तर बार अपनी भयंकरवा और शत्रु-दमन शक्ति का असाधारण परिचय दिया। वह स्टालिन-जिसे रूसी पुलिस ६ बार कैद कर चुकी थी-अब भी उतना ही विकट और साहसी बन गया, जितना कि वह आन्दोलन के प्रारम्भ में था। जान पड़ता है कि कैरनस्की को अभी तक यह ज्ञात न हो पाया था कि मैं बारूद से भरे हुए पीपे पर बैठा हूँ और जन्नती हुई दियासलाई स्टालिन के हाथ में है। जो सैनिक-नाविक बाल्टिक के बन्दरों में थे, वह पहले ही बोल्शेविक दल के पक्ष एवं सहायता की प्रतिज्ञा कर चुके थे अत: सेंटपीटर्सबर्ग की सेनाओं के क्रान्तिकारी आन्दोलन के कारण विद्रोही हो जाने पर जब रनरकी ने नई सेना को युद्धक्षेत्र में भेजने का विचार किया तो उसे मानने के लिये कोई भी तयार न हुआ। उधर जो सेनाएं युद्ध-क्षेत्र से वापिस गजधानी को भा रही थीं, उन्हें स्टालिन के आदमियों ने मिल कर ऐसी पट्टी पढ़ाई कि वह सेंट पीटर्सबर्ग लौटने के स्थान पर अपने घरों को चली गई। उन्होंने इतने से ही बस नहीं किया, वरन गांवों में पहुंचने पर लोगों में यह विचार पैलाना आरम्भ किया कि शताब्दियों की दबी हुई प्रजा के लिये अपने अधिकार प्राप्त करने का समय आ गया है। किसानों को चाहिये कि उस भूमि पर-जो अभीतक जमींदारों के कब्जे मेंथी-अपना कब्जा जमा ले और किसी को पास न फटकने दें। १० अक्तूबर को सभी तयारियां पूरी हो गई। अब लेनिन के वापिस पाने का समय भा पहुंचा। लेनिन वेष बदल कर राजधानी में दाखिल हुआ। उसने काले रंग का चश्मा लगाया हुआ था और गले में मजदूरों के वस्त्र पहने हुए थे। इस बदले हुए वेष में उसे बहुत कम लोग पहचान सके । उसने आते ही एक कमेटी बनाई, जिसने दो सप्ताह में ही देश के अन्दर बोल्शेविक पार्टी के झंडे गाड़ दिये और देश का