पीपहचर] ही जमेनी के उच्च सेनाधिकारी सोडन डार्फ को दी और उसने लेनिन द्वारा प्रस्तुत शतों को साधारण संशोधन के पश्चातू स्वीकार कर लिया। वहशत निम्न प्रकार थी:- १.जिन रेलगाड़ियों में लेनिन और उसके कर्मचारी यात्रा करें, उनको जर्मनी के प्रदेश में विशेष अधिकार प्राप्त होंगे। २. बर्मन शासकों एवं अधिकारियों को उन गाड़ियों में प्रवेश करने का अधिकार न होगा। ३. जर्मन अधिकारी उन गाड़ियों के यात्रियों से न राहदारी पत्र (पासपोर्ट) को माँगें करेंगे और नाहीं उनके सामान का निरीक्षण करेंगे। ४. जर्मन अधिकारी यही समझेंगे कि यह मुहर बन्द गाड़ियाँ हैं और इनको इसी रूप में जमेन-भूमि से गुजरने दिया जावेगा। वह स्पेशल ट्रेन जिसके द्वारा यह ऐतिहासिक यात्रा होनी थी। जर्मनी और स्वीजरलैंड की मध्यसोमा के निकट शाफहोसन स्थान पर तयार हुई, इस ऐतिहासिक यात्रा को शर्ते उपरोक्त ही थों। इस गाड़ी का नाम तब से 'लेनिन को मुहरपन्द गाड़ी' हो प्रसिद्ध रहा है। नसमें कुल ३२ यात्री सवार थे। इसे असाधारण गति से जर्मन-भूमि से गुजारा गया। इस अवसर पर सोडन डाफे ने जो शब्द कहे थे, वह जर्मनी के सेनाधिकारियों की साधारण नीति पर प्रकाश डालते हैं। वह शब्द यह थे- "माज हमारे जीवित गोला बारूद्ध का क्या होगा?" पाठक समझ गये होंगे, इसका निर्देश किस ओर था। सारांश वह मोहर बन्द गाढ़ी जीवित गोला बारूद्ध सहित बिना किसी घटना के जर्मन-सीमा पर जा पहुँची।सास नजकी बन्दर में पहुँचकर यह लोग स्वेडेन के एक जहाज पर सवार हुए और
पृष्ठ:स्टालिन.djvu/७६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।