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लटका देना पड़े तो उसकी चिन्ता न करूंगा। किन्तु किसी भी स्थिति में मैं अपने अधिकार को न छोड़ गा।" जार के गही से हटते ही नया मंत्रिमंडल बना। इस मंत्रीमंडल में राजकुमार सूद प्रधान मंत्री बना और मभ्य श्रेणि तथा उच्च श्रेणि के व्यक्तियों को उसमें सम्मलित किया गया। किन्तु मोवी की प्रबलता तब भी किसी प्रकार कम नहीं हुई। राजनीतिक वातावरण उसी प्रकार अशान्त था। क्रान्ति की ज्वाला देश के कोने २ में भयङ्कर रूप धारण करती जा रही थी। शीघ्र ही एक नवयुवक क्रान्तिकारी वकील जिसका नाम कैरनस्की था-नए शासन का पथ प्रदर्शक बना। उसने अपनी अपूर्व प्रभाव-पूर्ण वक्तृता में यह प्रसिद्ध शब्द कहे, "मैं रूस को सारे योरुप के देशों से अधिक स्वतंत्र बना कर दिखाऊंगा।" कहना न होगा कि अभी तक लेनिन और उसके साथी रूस से बाहर ही थे। लेनिन १६०५ की असफल क्रान्ति के बाद स्वीजलैंड भाग गया था। वहां रह कर वह एक पत्र का सम्पादन करता, श्रपने शिष्यों को आदेश करता और उस भारो आन्दोलन को चलाता रहा, जिसे आगे चल कर संसार के एक विस्तृत देश में भयङ्कर क्रांति मचानी थी। वह अपने साथियों सहित स्वीजरलैंड के तटस्थ प्रदेश में रहते हुए बड़ी उत्सुकता-पूर्वक रूस की नवीन खबरों की ताक में लगा रहता था। जब उसे पता लगा कि जार ने शासन-काये छोड़ दिया है, तो उसने सोचा कि अब कार्य-श्रेत्र में आने का अच्छा समय आ गया है। किन्तु कठिनाई यह थी कि रूस की चारों ओर से नाकाबन्दी हो रही थी। अब लेनिन और उसके साथी प्रविष्ट हों तो किस वरह ? पश्चिम की और जर्मनी, भास्ट्रिया, हंगेरी, टर्की और