अक्टूबर की क्रान्ति आखरि मार्च १६१७ में रूस की राष्ट्रीय क्रान्ति का श्रीगणेश हुआ। आश्चर्य की बात तो यह है कि राजकीय वेश का प्रसिद्ध ग्रैंड ड्यूक भी राष्ट्रीय जाप्रति का समर्थक बनकर इस आन्दोलन में सम्मिलित हो गया। मध्य श्रेणि की जनता ने नई स्थिति का इस लिये स्वागत किया कि उसका विचार था कि इस प्रकार यह स्वच्छन्द शासन पाश्चात्य प्रजातंत्र की स्वाधीनता प्राप्त कर लेगा। किन्तु पत्थर जब एक बार लुढ़कना प्रारम्भ हो जाता है और रास्ता ढलवां हो तो कोई नहीं कह सकता कि कहां जाकर ठहरेगा और ठहरने से पहले किस २ को कुचल डालेगा। साधा- रण निधन जनता के साथ साथ २ मार्च को प्रैण्ड ड्यूक न्लाडी मैरोविच ने भी अपने नौकरों द्वारा अपने भव्य भवन पर लाल पताका फहरा दी। उसी अवस्मरणीय विधि को निकोलास द्वितीय-दोनों रूस के सर्वसत्ताधारी बार ने, जो भविष्य की घटनामों का बिल्कुन ज्ञान न रखता था-मुस्कराते हुए अपने बेटे को राजगदी सौंप दी। ऐसा प्रतीत होता है कि वह पूर्व के अपने शब्दों को विलकन ही भूल गया। उसने बड़ी दृढ़ता पूर्वक यह शब्द कहे थे। “यदि मुझे रूस की भाषी जन-संख्या को भी फांसी पर
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