[चौसठ हो जावेगी। उस दशा में निर्वासितों की मुक्ति भवश्यक है। और यदि रूस विजयी हुआ वो भी क्रांति होगी। लोग अपने अधिकारों के लिये अनिवार्य रूप से संघर्ष करेंगे। भूतकाल के इसद क्रान्तिकारी कोध्रुवसागर के पास रहते हुए चार वर्ष बीत गये । सन् १९१७ की वसन्त ऋतु में यह समा चार इस हिमपूर्ण स्थान पर पहुंचा कि देश के छोर २ में क्रान्ति का साम्राज्य स्थापित हो गया और जार का शासन सदा के लिये समाप्त हो गया । नए शासन की घोषणा इस दूरवर्ती स्थान पर भी पहुंची, जिसका सन्देश यह था कि सभी राजनैतिक बन्दी मुक्त किये जावें। स्टालिन को ध्रव-प्रदेश के चार वर्ष-जहां ठंडक और भयानक रीछों का दौर दौरा था-चार शताब्दी जैसे प्रतीक हुए। किन्तु अन्त में उसके पिंजरे का द्वार खोल दिया गया। वह मार्च, १९१७ में सेंट पीटर्स वर्ग पहुंचा और एक बार फिर परावडा पत्र का सम्पादन करने लगा। उसने उत्तरी भाग में अपने चार वर्ष व्यतीत किये थे। इस बीच में उसकी सारी शक्ति और चुस्ती काफ़र हो चुकी थी। जिन चार वर्षों में संसार एक परिवर्तन में से गुजर रहा था और उसके साथी बड़े साहस के साथ पश्चिमी संसार में कार्य कर रहे थे, वह बेकार रहने के लिये विवश था। इस निरन्तर की बेकारी और बलात् लादी हुई चुप्पी ने स्टालिन की प्रकृति में एक भारी अन्तर पैदा कर दिया। अब वह एक शान्त काय्यकर्ता बन गया था। इन चार वर्षों में उसे भूतकाल पर विचार करने का पर्याप्त समय मिला। कठिनता से कोई ही दिन ऐसा जाता होगा जिस दिन उसे यह प्रश्न विचलित न करता हो कि रूस की खुफिया पुलिस को मेरी वास्तविकता से वास्तव में किसने परिचित
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