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[पासठ की पुलिस बड़ी गहराई तक पहुँच चुकी थी। उसने बड़ी खोज- पूर्वक दूर तक के हालात मलम कर लिये थे। इस पत्रांश पर स्टालिन के सभी कल्पित नाम सोसो, व्य ड, कोबा, नजरेषा, शीजीको, माहनोविच और स्टालिन साथ २ लिखे हुए थे। उस पत्र में प्रत्येक नाम के साथ यह भी अंकित था कि उसे कितना दंड मिला और दंड का कितना भाग इसने भुगता । स्टालिन को अब पता लगा कि वास्तविक कठिनाई किस वस्तु का नाम है। अब उसकी दशा निस्सन्देह कुछ दुर्बल सी होने लगी। ससके साथ एक भीषण अपराधी जैसा व्यवहार किया गया और उसे निर्वासित कर जमने वाले उत्तरी सागर के तट से केवल १५ मील वेर बेका नाम के एक छोटे से गांव में रक्खा गया। यहां केवल चार पांच घर आबाद थे। यहाँ जिन अभागों को निर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था, उनका हाल राबि- न्सन ऋसो जैसा होता था। उन्हें प्रत्येक वस्तु का स्वयं प्रबन्ध करना पड़ता अन्यथा मृत्यु का प्रास बनना पड़ता था। यदि कहीं से शिकार मार कर ले आवे तो खाले, अन्यथा भूखे ही मरें। पुलिस की एक विशेष टुकड़ी हर समय इन भीषण अपराधियों की देख भाल रखती थी। प्रगट रूप में वह स्वतंत्र थे, किन्तु वास्तव में पुलिस पग २ पर उनकी निगरानी करती रहती थी। गांव में बर्फ पर फिसलने वाली केवल एक गादी थी और वह भी पुलिस के कक्ष में । यह निर्वासिन-स्थान आने जाने के साधनों से बिलकुल रहित था। जो बन्दी पांच बार भागने का साहस सफ लवा-पूर्वक कर चुका था, वह भी यहां से भागने का साहस नहीं कर सकता था। स्टालिन आश्चर्य से सोचता था कि मुझे इस बन में कब तक रहना पड़ेगा। इस वर्ष रहना हो या .. वर्ष रहना पड़े। इससे