[पठावन केन्द्रीय समिति का सदस्य बना कर सम्मानित किया। इसके जीवन-काल की पिछली सफलता को दृष्टि में रखते हुए यह कहा जा सकता था कि वह समिति के अन्य सदस्यों की भांति बाहर रह कर भी काम कर सकता था। किन्तु पार्टी के नेतामों में वही ऐसा व्यक्ति था जो भारेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं को नहीं जानता था। अत: यह आवश्यक समझा गया कि वह कुछ समय तक रूस से बाहर रह कर कोई विदेशी भाषा सीखे। किन्तु उसमें विदेशी भाषाएं न जानने की जो त्रुटि थी उसका समाधान इस प्रकार हो जाता था कि वह दक्षिणी रूस की सभी भाषाओं को उनकी विविध शाखामों सहित जानता था। इसके अतिरिक्त स्टालिन देश के बाहर जाना पसन्द भी नहीं करता था। वह कहता था कि "मैं बाहर रहकर काम नहीं कर सकता। कैसा भय उपस्थित हो और मेरे विविध नामों के आधार पर कितने ही गिरफ्तारी के वारंट जारी हो तो भी मैं इस देश में रहकर ही काम करूंगा।" वह भली भाँति जनता था कि यदि इस बार पकड़ा गया वो साइबेरिया में २० वर्षका कालापानी प्राप्त होगा। यह सब कुछ होते हुए भी स्टालिन सभी प्रकार के भयों की उपेक्षाकर रूस की सीमा के अन्दर ही रहा। जो कार्य इस नवयुवक क्रान्तिकारी को सौंपा गया, वह उसके लिये उत्साह-प्रद था। प्रबन्धक समिति के सदस्य के रूप में वह सेंट पीटर्स वर्ग पहुँचा। वहां उसे पार्टी के पत्र परावला का प्रबन्ध सौंपा गया। इस पत्र को उस समय के पड़ताल विभाग से स्वीकृत करा कर उसे एक अहानिकारक पत्रके प्रकाशित करना था। यह समझा जाता था कि स्टालिन इस कार्य को उत्तम ढंग से पूरा कर सकेगा। स्टालिन ने शाहबानोविच के नाम से प्रवेश-माया(decla- रूप में
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