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[क्तीस भवः उसे पाठशाला से निर्वासित किया जाता है।" इस के अतिरिक्त एक रोज प्रोफेसरों ने देखा कि वह पाठ. शामा गिर्जा में बैठा अपने साथियों से मजाक तौर पर प्रार्थना करा रहा था और उसके साथी दिल्लगी के तौर पर हंस रहे थे। ईश्वर जाने बस्तु-स्थिति क्या थी सम्भव है कि विद्रोही विद्यार्थी ने यह देख कर कि इस धामिक पाठशाला से मुक्ति पाने का अन्य कोई साधन नहीं है तो उन्होंने ऐसी हरकतें प्रारम्भ करदी हों, जिनके कारण उनका वहां रहना असम्भव हो गया। यह सन् १८१७ ई. की घटना है। अब व्यवसाय और रोषगार सहीन जो गरियो मे पिर बाबारापरने लगा। उसने कोई धन्धा न सीखा था। जो शिक्षा उसने प्राप्त की थी उससे उसका मन फिर गया था। अपने सीखे हुए पाठों को वह शीघ्र भुला देना चाहता था। अब जब भी वह सोचता तो पादरी का नीवन हास्यास्पद नजर आता । जेब में एक पाई भी नकद मौजूद नहीं। वह अपने माता पिता के पास भी जाते हुए हिचकिचाता था। क्योंकि वह सोचता था कि माता पिता की जो आशाए उसके जीवन के साथ थी वह भी समाप्त हो गई। अथ वह उनके सामने क्या ह लेकर जावे। वह अठारह वर्ष का नवयुवक जिसकी जीवन नौका ममषार में पंस गई थी, ६.प.लस की गलियों में हर समय आवारा फिरता देखा जाता था। पेट के लिए नहीं। तन ढाँकने के लिये आवश्यक कपड़ा नहीं । निर्दय संसार के थपेड़े उस पर चारों ओर से पड़ रहे थे। परन्तु ऐसी विवाट परिस्थिति में भी वह निराश अश्या परेशान नहीं था। उस पर आपत्ति के बादल महरा रहे थे, परन्तु वह दृढ़ता-पूर्वक उनका मुकाबला करने के लिये उद्यत था। भोजन मय्यस्सर