बाल्यकाल की आवारागर्दी एक नवयुवक अपने विचारों में डूबा हुआ शनै: २ बाज़ार में चला जा रहा है। उसने रूस के पुराने ढंग के वह वस्त्र धारण किये हुए हैं, जो उस देश के धामिक विद्याथियों के लिये विशेष चिन्ह समझ जाते थे। वह सिर झुकाए हुए उस धर्म पुस्तक के स्वाध्याय में तल्लीन है जिसे वह अपने हाथ से एक क्षण के लिय भी प्रथक करना नहीं चाहता, क्योंकि वह जानता है कि भविष्य में उसे नेतृत्व करना है । अत: वह अपने आपको प्रत्येक प्रलोभन से तटस्थ रखना आवश्यक समझता है । नगर की गलियां प्रलोभनपूर्ण वस्तुओं से अटी पड़ी हैं। उनसे बचे रहने का यही एक मात्र उपाय है कि वह धर्म पुस्तकों के पवित्र वाक्यों को पढ़ता और बोलता हुआ चले और अपनी दृष्टि एक क्षण के लिये भी इधर उधर न जाने दे। बाजार में थोड़े समय तक चलते रहने के पश्चात नव- युवक विद्यार्थी उस पुल पर से गुजरा, जिसके नीचे कोरा- नदी का गाढ़ा मैला पानी चक्कर काटता हुआ बह रहा था। उस समय उस बहते हुए गदले पानी को देख कर उस के ओठों पर खेदपूर्ण हर्ष की रेखा दृष्टि गोचर हुई। क्योंकि उसको कई वर्ष पूर्व की-जब कि वह अन्य प्रकार का जीवन व्यतीत करता था-एक
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