करती है। श्रीमती स्टालिन विवाह के पश्चात् १० वर्ष वक घर पर ही रहती रही और उसके बच्चे काफी बड़े हो गए। पति पल्ली में अनबन के चिन्ह कभी भी दृष्टि-गोचर नहीं हुए। इसके अतिरिक्त कुछ साक्षियां इस सम्बन्ध में भी मिलती हैं कि स्टालिन को अपने परिवार वालों से असीम स्नेह था । जब कमी उसे फुसेत मिलती, वह सीधा अपने कुटुम्ब में चला जाता था। एक अन्य किवदन्ती पहिले से भी अधिक प्रसिद्ध हुई। सुना गया कि कुछ व्यक्तियों ने स्टालिन के प्राण लेने का षडू यत्र रचा था। उन्होंने उसके भोजन में विष मिना दिया। किंतु उस भोजन को श्रीमती स्टालिन ने ही खाया और अपने प्राण देकर अपने पति के प्राणों की रक्षा को । किन्तु यह कथन इतना विचित्र प्रतीत होता है कि इसकी सत्यता पर अकारण ही संदेह होता है। इस सम्बन्ध में ऐसी ही कई अन्य मनोहर ओर भाकर्षक अफवाहें फैली, किन्तु तथ्य कुछ और ही था । वास्तव में श्रीमती स्टालिन को पेट को मिली को सूजन का रोग था, किन्तु उसने रोग-उपचार पर विशेष ध्यान नहीं दिया । उसने कई दिन तक कठोर पीड़ा से दुःखी रहने पर भी अपने पति को सूचित नहीं किया। पीड़ा निस्सन्देह अधिक थी, किन्तु वह चुपचाप सहन करती रही। अन्त में जब बिलकुल न सह सकी वा डाक्टरों को बुलवाया गया। किन्तु उस समय रोग सीमा को पार कर चुका था। अतएव श्रीमती स्टालिन के प्राण न बच सके । स्त्री के मरने के पश्चात् नोगों को इस तथ्य का ज्ञान हुआ कि स्टालिन को अपनी जीवन-सहचरी से प्रगाढ़ प्रेम था। वह अक्तूबर को क्रान्ति से लेकर इस समय तक उसके जीवन के प्रत्येक कार्य में भाग लेती रही। स्टालिन के इस प्रगाद स्नेह का एक अन्य बड़ा प्रमाण यह है कि उसने अपनी पत्नी के शव को
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