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स्कंदगुप्त
 


तो आत्महत्या करूंगा। ऐसे देवता के प्रति मैंने दुराचरण किया था। ओह! ( छुरी निकालना चाहता है)

स्कंद०-- ठहरो शर्व! मैं तुम्हें आजीवन बन्दी बनाऊँगा।

(रामा आश्चर्य और दुःख से देखती है)

स्कंद०-- शर्व! यहाँ आओ।

(शर्व समीप आता है)

देवकी-- वत्स! इसे किसी विषय का शासक बनाकर भेजो, जिसमें दुखिया रामा को किसी प्रकार का कष्ट न हो।

सब-- महादेवी की जय हो!

स्कंद०-- शर्व! तुम आज से अन्तर्वेद के विषयपति नियत किये गये। यह लो--(खड्ग देता है)

शर्व-- (रूद्ध कंठ से) सम्राट्! देवता! आपकी जय हो! (देवकी के पैर पर गिरकर) माँ ! मुझे क्षमा करो, मैं मनुष्य से पशु हो गया था! अब तुम्हारी ही दया से मैं मनुष्य हुआ। आशीर्वाद दो जगद्धात्री कि मैं देव-चरणों में आत्मबलि देकर जीवन सफल करूँ!

देवकी-- उठो। क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पाशव धर्म है। उठो, मैं तुम्हें क्षमा करती हूँ।

( शर्व खड़ा होता है)

स्कंद०-- भटार्क! तुम इस गुप्त-साम्राज्य के महाबलाधिकृत नियत किये गये थे, और तुम्हीं साम्राज्य-लक्ष्मी महादेवी की

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