पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/८२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
द्वितीय अंक
 


कर) और यह कौन है? क्यों जी! तुमने इस वृद्धा को क्यों अपमान किया है?

कमला-- देवी! यह मेरा पुत्र था।

विजया-- था! क्या अब नहीं?

कमला-- नहीं, इसने महाबलाधिकृत होने की लालच में अपने हाथ-पैर पाप-श्रृंखला में जकड़ दिये; अब फिर भी उज्जयिनी में आया है-- किसी षड्यन्त्र के लिये!

विजया-- कौन, तुम महाबलाधिकृत भटार्क हो? और तुम्हारी माता की यह दीन दशा!

कमला-- ना बेटी! उससे कुछ मत कहो, मैं स्वयं इसका ऐश्वर्य्य त्यागकर चली आई हूँ। महाकाल के मंदिर में भिक्षाग्रहण करके इसी उज्जयिनी में पड़ी रहूँगी, परंतु इससे•••

भटार्क-- माँ! अब और न लज्जित करो। चलो--घर चलूँ।

विजया-- (स्वगत) अहा! कैसी वीरत्व-व्यंजक मनोहर मूर्ति है। और गुप्त-साम्राज्य का महाबलाधिकृत!

कमला-- इस पिशाच ने छलना के लिये रूप बदला है। सम्राट का अभिषेक होनेवाला है, यह उसीसे कोई प्रपञ्च रचने आया है। मेरी कोई न सुनेगा, नहीं तो मैं स्वयं इसे दंडनायक को समर्पित कर देती।

(सहसा मातृगुप्त, मुद्गल और गोविन्दगुप्त का प्रवेश)

""कौन! भटार्क? अरे यहाँ भी!!”

७७