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स्कंदगुप्त
 

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स्कंदगुप्त

  • संयुक्तोगमिनो विगुडरजसः सत्वानुकम्प्रोद्यत शिप्यायस्य सद्विचेरुरतुलालाचजेपत्यक तेभ्यः शीलगुणन्धितश्च शतशः शिष्याः प्रशिप्याः क्रमाने

जातास्तुंगनद्रवंशतिलकाः प्रोत्सृज्य राज्यश्चियम्” जब राजकुल के श्रमण और राजपुत्र लोग यहाँ तीर्थयात्रा के लिये बराबर आते थे, और संस्कृत-कविता का प्रचार भी रहा हो, तबः उस काल के सर्वोच्च कवि की मैत्री की इच्छा भी होना स्वाभाविक है । और उस नष्टाश्रय महाकवि के साथ मैत्री करने में अपने के। धन्य समझनेवाले कुमारदास की कथा में अविश्वास का कारण नहीं है । यदि स्कंदगुप्त विक्रमादित्य के मरने पर दुखी होकर राजमित्र के पास सिंहले जाना इनका ठीक है, तो यह कहना होगा कि “ मेघदूत' उसी समय का काव्य है और देवगिरि की स्कंदराज प्रतिमा उनकी ऑखों से देखी हुई थी, जिसका वर्णन उन्होने * देवपूर्व गिरि ते-" वाले श्लोक में किया है ।। यदि ५२४ ई० तक कालिदास का जीवित रहना ठीक है तो उन्होने गुप्तवंश का ह्रास भी भली भाँति देख लिया अथवा सुना होगा । रघुवंश में वैसा ही अंतिम पतन-पूर्ण वर्णन भी है। | कुमारदास का सिंहल का राजा उसी काल में होना, और सिंहल में कालिदास के जाने की रूढ़ि उस देश में माना जाना, उधर चीनी यात्री द्वारा वर्णित कालिदास का मनोरथ को हटाना, दिनाग और कालिदास का द्वन्द्व, विक्रमादित्य और मातृगुप्त की कथा का ‘राजतरंगिणी' में उसी काल का उल्लेख, हूण-राजकुल में *सुगयून' के अनुसार विग्रह; काश्मीर-युद्ध की देखी हुई घटना--

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