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स्कंदगुप्त
 

स्कंद्गुप्त गण-राष्ट्र का संवंध सांकेतिक है, औैा कालिदास का उस नाटक का स्वयं प्रयोग करना भी ध्वनित होता है । यह अभिनय ' साह- सांक'-उपाधिधारी किक्रमादित्य-तास के मालवगणपत्ति की परि- षद् से हुय्रा था । इसलिये लाटककर कालिदास इसको पूर्वे प्रथम शताब्दी के है । (५) नाटकों की प्राकृत में मागधी-प्रचुर प्राकृत का प्रयेाग है । उस प्राकृत का प्रचार भारत में सेंकड़ों वर्षे पीछे हुश्रा था । पॉचवी, छठी शताव्दी में सहाराष्ट्रीय प्राकृत प्रारंभ हो गई थ्री औार उस काल के प्रंथों में उसी का व्यवहार सिलता है। शाकुतल * आरदि की प्राकृत में बहुत-से प्राचीन प्रयाग मिलते हैं, जिनका व्यवहार छठी शताब्दी में नहीं था । इसलिये नाटककार कालिद्श्स का होना, विक्रमादि्त्य प्रथस ( सालवपति ) के समय-ईसवी पूर्व प्रथस शताब्दी-में ही तिघोरित किया जा सकता है। उ काव्यकार कालिदास अनुमान से पाँचवीं शताब्द्री के उत्तराज्द और छठी शताब्दी के पूर्वोंद्ध में जीवित थे । यह काश्मीर के थे, ऐसा लोगों का मत काश्मीर-बियेाग का वणेन है ! यदि ये काश्मीर के न विल्हण चके यह लिखने का साहस न होता- है। मेघदूत' से जो अलका का वणेन है, वह होते तेा सहेदरा घकुंकुमकेतराण साधैन्तनूर्न कविताविलासा शारदादेशमपास्य दष्टस्तेप्ष यदन्यत्र मया प्रोहः न ५०० वर्ष के प्राचीन ' पराक्रम-बाहु-चरित * में इसका उल्लेख ३०

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