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कालिदास
 

है कालिदास संकेत भी गुप्तवंशियों के ही सम्वन्ध में सान लिये जायँ, तो यह समझ में नहीं अराता कि चन्द्रगुप्त द्वितीय के सससामयिक कवि ले भावी राजाओं का वणन कैसे कर दिया, जब कि शुप्तवंश में उत्तराधिकार-नियस निश्चित नहीं था कि ज्येष्ट पुत्र ही राज्य का अधिकारी हो ! समुद्रगुप्त केवल अपनती योग्यता से ही युवराज हुए और चन्द्रगुप्त भी ; तव * रघुवंश ' से कुमार और उनके बाद स्दन्दगुप्त का वण्ेन कैसे छ्राया ? चन्द्रगुप्त के समय गुप्त- साम्राज्य का यौवन-काल था, फिर शनिवण-जैसे राजा का चरित्र दिखाकर * रघुवंश ' का अंत करना चन्द्रगुप्त के समसामयिक और उलकी सभा के कालिदास कैसे लिख सकते हैं ? चास्तव सें, रघुवंश' की-सो दशा गुप्तवंश को हुई । अग्निवखे के समान हो पिछले गुप्तब्ंशी विलासी और हीन-वैभव हुए । तब यह सानना पड़ेगा कि शुण्तवंशा का हास भो कालिदास ने देखा था और तब रघुवंश की रचना की थी : ईसबी-पूरचें प्रथम शाताब्वी के कालिदास के लिये भी उधर प्रमाण मिलते है । इसलिये यह समस्या उलझती जा रही है, थ्रौर इसका मूल कारण है-एक ही कालिदास को काव्य और नाटको का कर्ता मान लेना । हमारी सम्मति मे काव्यकार कालिदास और नाट्यकार कालिदास भिन्न-भिन्न थे, और * तलोदय ' श्रादि के. कत्ता कालिदास धंतिम और तीसरे थे । इस प्रकार जर्हण की कालिदास-त्ररथी का भीो समर्थन्त हो जाता है और सब पक्षो के प्रसाणो की सङ्गति भी लग जाती है---ययपि * शकुन्तला * और रघुवंश ? का श्रेय एक ही कालिदास को देने का संस्कार बहुत. प्राचीत है। विश्व-साहित्य के इन दो अन्थ-रत्तो का कत्ता एक २७

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