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स्कंदगुप्त
 

स्कंद्गुप्त तोरमान ने ५०० ई० में शुप्ववंशियों से सालव ले लिया था ; तव सातृगुप्ताली घटता ५०० ईं० के पहले की है । जो लोग यशोधम्म केा विऋ्रमादित्य सानते हैं, वे यह भी कहते हें कि सिहिरकुल को पराजित करने में यशोधम्में और तरसिंहगुप्त बालादि्त्य--सोलो का हाथ था । परन्तु यह भी भ्रस है । नर- सिंहगुष्त ५२८ था ५४४ ई० तक जीवित ही न थे । यशोधम्सें का समकालीन बालादित्य द्वितीय हो सकता है, जो हसारे दिये हुए वंशवृक्त के देखने से स्पष्ट हो जायगा । श्री काशीघ्रसाद जायसवाल ने अ्रपने विद्वत्तापूर्डं लेख में यह प्रसाखणित किया है कि यशोधर्मदेव कलिक थे । ( जीवानंद- संस्करण ) ' कर्किपुराण * में लिखा है- प्रसीद जगसांनार धर्मवम्मेंन रमापते t श्रष्याय ३ [ मुने किमत्र कथर्न कल्किना धर्मवगण। t श्रध्याय ४ । राज-तरंगिणी * का यह अवतरण!श्र भी हमारे मत को पुष्ट करता है कि यशोधन्मैंदेव से पहले विक्रमाद्ित्य तक डुए थे- स्लेच्छोच्छेदाय वसुधां, हरेरवतरिष्दतः । शकान्विनाश्य येनादी काव्य्यं भारो लघूकृत: ॥ तरंग ३ ॥ भावी कल्कि यशोधन्मे के कार्यभार को लघु कर देनेवाले विक्रमादि्त्य उलसे ६० ही बर्ष पहले हुए थे, और वह थे श्री विक्रमादित्य स्कंद्गुप्त t इस तरह राज-तरंगिणी' के *श्रीमान

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