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स्कंदगुप्त
 

(७) स्कंद्गुप्त बिक्रसादित्य(८ ) पुरगुप्त प्रकाशादित्य
( ई० ४५-४६७ )( ई० ४६०-४६९ )

(९) नरसिंहगुप्त बालादित्य ( ई० ४६९-४७३ )

(१०) (द्वितीय) कुमारगुप्त क्रमादित्य? (ई० ४७३-४७७)

(७ ) उज्ज़यिनी का इसके चाँदी के सिकों पर परम भामवत श्र विकरपाद्त्यि स्कंदगुप्तः अ्ंकितित है। द्वितीय विक्रमादित्य सहान वीर । हू भी मिलता है । परतु

(न) इसके सेाने के सिकें पर ' श्री विक्रमः प्रकाशादित्य के शासन-क्ाल में मगव में इसने स्वतत्र रूद से ढ तवाये, फिर रूकंदग प्त के सके प उसकी डपाधि श्ी विक्रम ' भी ग्रहण ताम वाले सिक्के भी इसो के है, जिन्हें उज्जनयि तो सें स्कंदगु स ,ती हो ।

(९) यह प्रथभ वालादित्य है, जिसे राजत्रंगिएणेकार ने भ्र से विक्रमादित्य का भाई लिखा है प्रोर वह यशोधम्म का भी समकाखलीन नहीं थt १

(१०) कई विद्वान कुमारसुप्त को स्कंदगु्त' हैं । पन्तु यह ठोक नहीं 1 भिटारो के सील सते यह स्पष्ट हे जाता का उत्तराधिकारी मानते है कि कुमारगुप् छितीय पुरगुप्त का पुत्र था । सारनाथ बाले शिलालेख का कुमार- गुप्त शौर भिटारी के सील का कुमार, दोने एक ही व्यक्ति हैं, जिसका उत्तरा- घिकारी चुधगुप्त था-जिसके राज्यकाल में भालव पर हएँं वा श्रधिकार श*